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________________ १/२ गुणस्थानाधिकार (१) गुणस्थान किसको कहते हैं ? मोह और योग के निमित्त से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र इन आत्मा के गुणों की तारतम्य रूप अवस्थो विशेष को गुणस्थान कहते हैं। (२) गुणस्थानों के कितने भेद हैं ? चौदह हैं—(१) मिथ्यात्व, (२) सोसादद, (३) मिश्र (४) अविरत सम्यग्दृष्टि, (५) देशविरत, (६) प्रमत्त विरत, (७) अप्रमत्त घिरत, (८) अपूर्वकरण, (६) अनिवृत्तिकरण, (१०) सूक्ष्म साम्पराय, (११) उपशान्तमोह, (१२) क्षीणमोह, (१३) सयोगकेवली, (१४) अयोग केवली। (३) गुण स्थानों के नाम होने का कारण क्या है ? मोहनीय कर्म और योग । (४) कौन कौन से गुणस्थान का क्या क्या निमित्त है ? ___ आदि के चार गणस्थान तो दर्शनमोहनीय कर्म के निमित्त से हैं। पांचवं गुणस्थान से लेकर बारहवें गुणस्थान पर्यंत आठ गुणस्थान चारित्र मोहनीय के निमित्त से हैं। और तेरहवां और चौदहवां ये दो गुणस्थान योगों के निमित्त से हैं। भावार्थ - पहला गुणस्थान दर्शनमोहनीय के उदय से होता है। इसमें आत्मा के परिणाम मिथ्यात्वरूप होते हैं। चौथा गुणस्थान दर्शन मोहनीय के उपशम क्षय या क्षयोपशम से होता है । इस
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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