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________________ -गुणस्थान २४२ १.-मोक्ष व उसका उपाय (७) संवर किसको कहते हैं ? आस्रव के निरोध को संवर कहते हैं, अर्थात अनागत (नवीन) कर्मों का आत्मा के साथ सम्बन्ध न होने का नाम संवर है। (८) निर्जरा किसको कहते हैं ? आत्मा का पूर्व से बन्धे हुए कर्मों से सम्बन्ध छूटने को निर्जरा कहते हैं। (8) संवर और निर्जरा होने का क्या उपाय है ? सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र इन तीनों पूर्ण गुणों की एकता ही संवर निर्जरा का उपाय है। (१०) इन तीनों गुणों को पूर्णता युगपत होती है या कम से ? क्रम से होती है। (११) इन तीनों (रत्नत्रय) पूर्ण गुणों की एकता होने का क्रम किस प्रकार है ? जैसे जैसे गुणस्थान बढ़ते हैं तैसे ही ये गुण भी बढ़ते हुए अन्त में पूर्ण होते हैं।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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