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________________ ३-कर्म सिद्धान्त २०५ २-उदय उपशम आदि से अन्तिम गुण हानि के द्रव्य का परिमाण निकलता है। जैसे (ऊपर के दृष्टान्त में) ६०० में एक घाट ६४ (६३) का भाग देने से १०० पाये, सो अन्तिम गुण हानि का द्रव्य है। (२८) अन्य गुण हानियों का परिमाण किस प्रकार निकालना चाहिये ? अन्तिम गुण हानि के द्रव्य को प्रथम गुण हानि पर्यन्त दना दूना (गुणा का प्रमाण) करने से अन्य गुण हानियों का परिमाण निकलता है। जैसे- ऊपर के दृष्टान्त में १०० को दूना दूना करने से २००, ४००, ८००, १६००, ३२०० आते हैं । (२६) प्रत्येक गुणहानि में प्रथमादि समयों में द्रव्य का परिमाण किस प्रकार होता है ? निषेकहार को चय से गुणा करने से प्रत्येक गुण हानि के प्रथम समय का द्रव्य निकलता है, और प्रथम समय के द्रव्य में से एक एक चय घटाने से उत्तरोत्तर समयों के द्रव्य का परिमाण निकलता है। जैसे-निषेकहार १६ (गुण हानि आयाम x २) को चय ३२ से गुणा करने पर प्रथम गुण हानि के प्रथम समय का द्रव्य ५१२ होता है, और ५१२ में एक एक चय अर्थात ३२ ३२ घटाने से दूसरे समय के द्रव्य का परिमाण ४८०, तीसरे का ४४८, चौथे का ४१६, पांचवें का ३८४, छटे का ३५२, सातवें का ३२०, और आठवें का २८८ निकलता है। इसी प्रकार द्वितीयादि गुणहानियों में भी प्रथमादि समयों के द्रव्य का परिमाण निकाल लेना। (३०) निषेक हार किसको कहते हैं ? गुण हानि आयाम से दूने परिमाण को निषेकहार कहते हैं । जैसे (उपरोक्त दृष्टान्त में) गुण हानि आयाम ८ से दूने १६ को निषेकहार कहते हैं। (३१) चय किसे कहते हैं ? श्रेढ़ी व्यवहार गणित में समान वृद्धि के परिमाण को चय कहते हैं।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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