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________________ ३-कर्म सिद्धान्त २०४ २-उदय उपशम आदि (२३) गुण हानि किसको कहते हैं ? गुणाकार रूप हीन हीन द्रव्य जिसमें पाया जाये उसको गुणहानि कहते हैं । जैसे—किसी जीव ने एक समय में ६३०० परमाणुओं के समूह रूप समय प्रबद्ध का बन्ध किया, और उसमें ४८ समय की स्थिति पड़ी। उसमें गुण हानियों के समूह रूप नाना गुणहानि ६ में से प्रथम गुणहानि के परमाणु ३२००, दूसरी गुणहानि के १६००, तीसरी गुणहानि के ८००, चौथी गुण हानि के ४००, पांचवीं गुणहानि के २०० और छटी गुणहानि के १०० हैं। यहां उत्तरोत्तर गुणहानियों में गुणाकार रूप हीन हीन परमाणु (द्रव्य) पाये जाते हैं इसलिये इसको गुणहानि कहते हैं। (२४) गुण आयाम किसको कहते हैं ? एक गुण हानि के समय के समूह को गुणहानि आयाम कहते हैं। जैसे-ऊपर के दृष्टान्त में ४८ समय की स्थिति में ६ गुणहानि थीं, तो ४८ में ६ का भाग देने से प्रत्येक गुणहानि का परिमाण ८ आया । यही गुणहानि आयाम कहलाता है। (२५) नाना गुणहानि किसको कहते हैं ? गुण हानि के समूह को नाना गुणहानि कहते हैं । जैसे—ऊपर के दृष्टान्त में आठ-आठ समय की छ: गुणहानि हैं, सो ही छ: संख्या नाना गुणहानि का परिमाण जानना। (२६) अन्योन्याभ्यस्त राशि किसको कहते हैं ? नाना गुणहानि प्रमाण दूओ माण्डकर परस्पर गुणाकार करने से जो गुणनफल हो उसको अन्योन्याभ्यस्त राशि कहते हैं । जैसे-ऊपर के दृष्टान्त में ६ दूओ माण्डकर परस्पर गुणा करने से ६४ होते हैं, सो ही अन्योन्याभ्यस्त राशि का परिमाण जानना। (२७) अन्तिम गुण हानि का परिमाण किस प्रकार से निकलना ? एक घाट अन्योन्याभ्यस्त राशि का भाग समय प्रबद्ध को देने
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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