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________________ ३- कर्म सिद्धान्त १६६ १ - बन्धाधिकार (१७८) आठों कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति कितनी कितनी है ? ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, अन्तराय इन चारों कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति तीस तीस कोड़ा कोड़ी सागर की है । मोहनीय कर्म की ७० कोड़ा कोड़ी सागर की है ( तहां भी दर्शन मोहनीय की ७० और चारित्र मोहनीय की ३० कोड़ा कोड़ी सागर है), नाम कर्म व गोत्र कर्म की बीस बीस कोड़ा कोड़ी सागर और आयु की तेतीस कोड़ा कोड़ी सागर है । ( १७६ ) आठों कर्मों की जघन्य स्थिति कितनी है ? वेदनीय की १२ मुहूर्त, नाम तथा गोत्र की आठ मुहूर्त और शेष समस्त कर्मों की अन्तर्मुहूर्त जघन्य स्थिति है । (१८०) कोड़ा कोड़ी किसे कहते हैं ? एक क्रोड़ को एक क्रोड़ से गुणा करने पर जो लब्ध आबे उसको एक कोड़ा कोड़ी कहते हैं । (१८१) सागर किसे कहते हैं ? दस कोड़ा कोड़ी अद्धापल्यों का एक सागर होता है । (१८२) अद्धापल्य किसे कहते हैं ? २००० कोस गहरे और २००० कोस चौड़े गोल गड्ढे में, कैंची से जिसका दूसरा भाग न हो सके, ऐसे मैंढे के बालों को भरना । जितने बाल उसमें समावें उनमें से एकएक बाल को सौ सौ वर्ष पश्चात निकालना । जितने वर्षों में वे सब बाल निकल जावें, उतने वर्षों के जितने समय हों, उसको व्यवहार पल्य कहते हैं । व्यवहार पल्य से असंख्यात गुणा उद्धारपल्य है और उद्धार पल्य से असंख्यात गुणा अद्धापल्य होता है । (१८३) मुहूर्त किसको कहते हैं ? अड़तालीस मिनट का एक मुहूर्त होता है । (१८४) अन्तर्मुहूर्त किसको कहते हैं ? आवली से ऊपर और मुहूर्त से नीचे के काल को अन्तर्मुहूर्त कहते हैं ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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