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________________ ३-कर्म सिद्धान्त १८० . १-बन्धाधिकार (३४) दर्शनमोहनीय किसे कहते हैं ? आत्मा के सम्यक्त्व गुण को जो घाते उसे दर्शनमोहनीय कहते (३५) दर्शन मोहनीय के कितने भेद हैं ? तीन हैं—मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति । (३६) मिथ्यात्व किसे कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से जीव को अतत्व श्रद्धान हो, उसको मिथ्यात्व कहते हैं। (३७) सम्यमिथ्यात्व किसे कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से मिले हुए परिणाम; जिनको न सम्यक्त्व रूप कह सकते हैं न मिथ्यात्व रूप, उसको सम्यमिथ्यात्व कहते (३८) सम्यकप्रकृति किसे कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से सम्यक्त्व गुण का मूल घात तो न हो परन्तु चल मलादि दोष उपजें उसको सम्यक्प्रकृति कहते हैं। (३६) चारित्र मोहनीय किसे कहते हैं ? जो आत्मा के चारित्र गुण को घाते उसको चारित्र मोहनीय कहते हैं। (४०) चारित्र मोहनीय के कितने भेद हैं ? दो हैं-कषाय (वेदनीय) और नोकषाय (वेदनीय)। ४१. कषाय व नोकषाय वेदनी किसे कहते हैं ? जिन प्रकृतियों के उदय से जीव में कषाय उत्पन्न हो वह कषाय वेदनीय कर्म है। किंचित कषाय को नोकषाय कहते हैं। जिस प्रकृति के उदय से जीव में नोकषाय उत्पन्न हो वह नोकषाय वेदनी है। ४२. कषाय के कितने भेद हैं ? सोलह-अनन्तानुबन्धी क्रोध, अनन्तानुबन्धी मान, अनन्तानुबन्धी माया, अनन्तानुबन्धी लोभ । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध,
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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