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________________ ३- कर्म सिद्धान्त १७६ १ - बन्धाधिकार साधन सामग्री का वियोग कराने में कारण हो वह साता वेदनीय कर्म है । इसी प्रकार भौतिक दुख व उसकी साधन सामग्री का संयोग तथा सुख की साधन सामग्री का वियोग करने में कारण हो वह असातावेदनीय कर्म है । (३०) मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? जो आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्र गुण को घाते उसे मोहनीय कर्म कहते हैं । ३१. सम्यक्त्व व चारित्र गुण का घात क्या ? अपने पदार्थ चेतन स्वरूप की प्रतीति न होने के कारण शरीर को मैं तथा शरीर की साधन बाह्य चेतन अचेतन सामग्री को इष्टानिष्ट मानते रहना सम्यक्त्व गुण का घात है । शरीर व शरीर साधन उपरोक्त सामग्री में अहंकार ममकार करते हुए उसमें ही कर्तृत्व व भोक्तृत्व भाव के कारण अत्यन्त व्यग्रता से उसी में राग द्वेष हर्ष विषाद करते रहना चारित्र गुण का घात है, क्योंकि समता भाव का नाम चरित्र कहा गया है । ३२. ज्ञान दर्शन गुण का घात और सम्यक्त्व चारित्र गुण का घात इन दोनों में क्या अन्तर है ? ज्ञान दर्शन का घात केवल आवरण रूप है और सम्यक्त्व चारित्र का घात मूर्छा रूप है । अर्थात पहिले घात से जीव की शक्ति केवल कम हो जाती है पर मूर्छित होकर विकृत या विपरीत नहीं होती। दूसरे घात से वह मूर्च्छित होकर विकृत या विपरीत हो जाती है अर्थात वस्तु जैसी नहीं है वैसी भासने लगती है, और जो अपना कर्तव्य नहीं है वही कर्तव्य दीखने लगता है । ज्ञान दर्शन के घात से जीव की विशेष हानि नहीं पर सम्यक्त्व चारित्र का घात ही से उसे संसार बन्धन में डालने के कारण विशेष नाशकारी है । (३३) मोहनीय के कितने भेद हैं ? दो हैं - दर्शनमोहनीय व चारित्र मोहनीय |
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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