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________________ २--द्रव्य गुण पर्याय १७२ ६-अन्य विषयाधिकार अभाव में कार्य न हो सके, उसे उदासीन निमित्त कहते हैं। जैसे घट की उत्पत्ति में चक्र के नीचे की कीली अथवा ध्वजा हिलाने में ध्वज दण्ड । उदासीन निमित्त कार्य का नियामक नहीं होता, अर्थात इसके होने पर कार्य हो अथवा न भी हो। पर इसके बिना कार्य होना सम्भव नहीं। ४२. बलाधान निमित्त किसे कहते हैं ? जिस निमित्त में इच्छा व क्रिया न हो, पर फिर भी वह कार्य का नियामक हो अर्थात उसके होने पर कार्य अवश्य हो, उसे बलाधान निमित्त कहते हैं । जैसे राग द्वेष की उत्पत्ति में मोहनीय कर्म का उदय तथा दर्पण के प्रतिबिम्ब के लिये बाह्य पदार्थ । (४३) उपादान कारण किसे कहते हैं ? (क) जो पदार्थ स्वयं कार्य रूप परिणमे उसे उपादान कारण कहते हैं; जैसे घट की उत्पत्ति में मत्रिका। (ख) (अनादि काल में द्रव्यों में पर्यायों का प्रवाह चला आ रहा है उसमें, अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती पर्याय युक्त द्रव्य उपादान कारण है और अनन्तर उत्तरक्षणवर्ती पर्याय युक्त द्रव्य उसका कार्य है।) ४४. उपादान कारण कितने प्रकार का होता है ? । एक त्रिकाली दूसरा क्षणिक । ४५. त्रिकाली उपादान कारण किसे कहते हैं ? त्रिकाली द्रव्य अपनी पर्याय का उपादान कारण है, क्योंकि सदा वह ही पर्याय रूप परिणमन करता है। ४६. क्षणिक उपादान कारण किसे कहते हैं ? । पूर्वक्षणवर्ती पर्याययुक्त द्रव्य उत्तरक्षणवर्ती पर्याययुक्त द्रव्य को कारण पड़ता है; क्योंकि उसका व्यय ही उत्तर पर्याय का उत्पाद है । अथवा उसका व्यय हुए बिना उत्तर पर्याय का उत्पाद नहीं हो सकता; जैसे कि घट की उत्पत्ति में कुशल ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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