SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २-द्रव्य गुण पर्याय १५४ ५-पर्यायाधिकार व्यञ्जन पर्याय कहते हैं । जैसे जीव की सिद्ध पर्याय । (३२) विभाव व्यञ्जन पर्याय किसे कहते हैं ? दूसरे के निमित्त से जो व्यञ्जन पर्याय हो उसे विभाव व्यञ्जन पर्याय कहते हैं, जैसे जीव की नारकादि पर्याय । (३३) अर्थ पर्याय किसे कहते हैं ? प्रदेशत्व गुण के सिवाय अन्य समस्त गुणों के विकार को अर्थ पर्याय कहते हैं। ३४. गुण पर्याय व अर्थ पर्याय में क्या अन्तर हैं ? । दोनों एकार्थवाची हैं, क्योंकि दोनों का सम्बन्ध द्रव्य के भावा त्मक गुणों से है। (३५) अर्थ पर्याय के कितने भेद हैं ? दो हैं-स्वभाव अर्थ पर्याय व विभाव अर्थ पर्याय । (३६) स्वभाव अर्थ पर्याय किसे कहते हैं ? बिना दूसरे निमित्त के जो अर्थ पर्याय हो उसे स्वभाव अर्थ पर्याय कहते हैं; जैसे जीव की केवल ज्ञान पर्याय । (३७) विभाव अर्थ पर्याय किसे कहते हैं ? पर के निमित्त से जो अर्थ पर्याय हो उसे वि में वह भार्याय कहते हैं। जैसे जीव के रागद्वेषादि । देशों में प्रदेश ३८. व्यञ्जन व अर्थ पर्याय को अन्य विशेषतायें दध के आकार व्यञ्जन पर्याय छद्मस्थ ज्ञानगम्य, चिरस्थायी, स्थूल होती है, और अर्थ पर्याय केवलज्ञान गर वचन अगोचर व सूक्ष्म होती है। हर ३९. स्थूल व सूक्ष्म पर्याय से क्या समझे ? बाहर में व्यक्त होने वाली पर्याय स्थूल तथा अव्यक्त रहकर अन्दर ही अन्दर होने वाली सूक्ष्म होती है। ४०. चिर स्थायी व क्षण स्थायी से क्या समझे? कुछ मिनट, घन्टे, दिन, महीने, वर्ष या सागरों पर्यन्त टिकने वाली पर्याय चिरस्थायी होती है और एक समय या क्ष द्र
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy