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________________ २-द्रव्य गुण पर्याय १३७ ४-जीव गुणाधिकार (१८४) देश-चारित्र किसे कहते हैं ? श्रावक के व्रतों को देश चारित्र कहते हैं । (देखो रक्तकाण्ड श्रावकाचार) (१८५) सकल चारित्र किसे कहते हैं ? मुनियों के व्रतों को सकल चरित्र कहते हैं। (१८६) यथाख्याव चारित्र किसे कहते हैं ? कषायो के सर्वथा अभाव से प्रादुर्भूत आत्मा की शुद्धि विशेष को यथाख्यात चारित्र कहते हैं। १८७. चारों चारिव किन-किन को होते हैं ? स्वरूपाचरण चारित्र चौथे गुणस्थान से १३ वें गुणस्थान तक होता । उसका जघन्य अंश चौथे में और उत्कृष्ट अंश १४ वें में होता है । देश चारित्र पंचम गुणस्थान की ११ प्रतिमाओं में होता है । जघन्य अंश पहली प्रतिमा में और उत्कृष्ट अंश ११ वी प्रतिमा में । सफल चारित्र छटे से दसवें गुण स्थान तक होता है । जघन्य छटे में और उत्कृष्ट १० वें में। यथाख्यात चरित्र ११ वें से १४ वें गुण स्थान तक होता है। जघन्व १० वें में और उत्कृष्ट १४ वें में । (विशेष आगे देखो अध्याय ४) १८८. सकल चारित्र के भेद बताओ? पांच है-सामायिक, छेदापस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म साम्पराय और यथाख्यात । १८९. सामायिक चरित्र किसे कहते हैं ? लाभ अलाभ में, शत्रु मित्र में, दुःख सुख में, नगर अरण्य में, निन्दा प्रशंसा में, इत्यादि सब द्वन्दों में समता रखना । राग द्वेष,इष्टानिष्ट बुद्धि या हर्ष विषाद जागृत न हो सामायिक चरित्र है। १६०. माला जपने को भी सामायिक कहते हैं ? वह केवल उपचार कथन है, क्योंकि वहां भी कुछ काल के
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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