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________________ २-व्रज्य गुण पर्याय १३६ ४-जीव गृणाधिकार १७६. सम्यग्दर्शन कितने प्रकार का है ? तीन प्रकार का है-औपशमिक, क्षायिक व क्षयो पशमिक। १७७. औपशमिकादि सम्यग्दर्शन किन्हें कहते हैं ? मिथ्यात्व कर्म के उपशमादि के निमित्त से आविर्भूत होने के कारण उनकी औपशमिकादि संज्ञा है । इन का अर्थ आगे अध्याय ३ में दिया गया है। (१० चारित्र) (१७८) चरित्र किसको कहते हैं ? बाह्य व अभ्यन्तर क्रिया के निरोध से प्रादुर्भत आत्मा की शुद्धि विशेष को चारित्र कहते हैं। (१७६) बाह्य क्रिया किसको कहते हैं ? हिंसा करना, झूठ करना, चोरी करना मैथुन करना और परिग्रह संचय करना। (१८०) आभ्यान्तर क्रिया किसे कहते हैं ? योग व कषाय (उपयोग) को आभ्यन्तर क्रिया कहते हैं। (योग व उपयोग का विस्तार आगे पृथक शीर्षक में किया गया है) (१८१) कषाय किसे कहते हैं ? क्रोध, मान, माया, लोभ रूप आत्म के विभाव परिणामों को - कषाय कहते हैं। (१८२) चारित्र के कितने भेद हैं ? चार हैं-स्वरूपाचरण चरित्र, देश चारित्र, सकल चारित्र व यथाख्यात चरित्र । (१८३) स्वरूपाचरण चारित्र किसे कहते हैं ? शुद्धानुभव के अविनाभावी चारित्र विशेष को स्वरूपाचरण चारित्र कहते हैं।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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