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________________ २- द्रव्य गुण पर्याय १३३ ४--जीव गुणाधिकार १५४ सर्वज्ञ का ज्ञान व दर्शन युगपत कैसे होता है ? जैसे दर्पण व तद्गत प्रतिबिम्ब दोनों में से किसी भी एक की ओर लक्ष्य न करें तो दोनों बातें युगपत दिखाई देती है, वैसे ही सर्वज्ञ को आत्मा की स्वच्छता तथा तद्भव ज्ञेयाकार युगपत दिखाई देते हैं। वहीं आत्मा की स्वच्छता के सामान्य प्रतिभास वाला अंश दर्शन है और प्रतिबिम्बों के विशेष प्रतिभास वाला अंश ज्ञान है 1 ( यह कथन भी जैनागम को अभिप्राय व्यक्त करने के लिये किया गया समझना, अन्यथा शुद्धात्मा को प्राप्त केवली में ऐसा होना युक्ति सिद्ध नहीं है क्योंकि उसका स्वरूप तो चित्प्रकाश मात्र है) १५५. छग्रस्थों को इस प्रकार दर्शन व ज्ञान युगपत क्यों नहीं होता ? अल्प मात्र पदार्थों को जानने की शक्ति रखने वाले छद्मस्थों में 'मैं इस पदार्थ को छोड़ कर अब दूसरे पदार्थ को जानू' इस प्रकार का विकल्प या प्रयत्न विशेष पाया जाता है । इसलिये उनका उपयोग बराबर बदलता रहता है, अतः उसमें आगे पीछे का क्रम पड़ना स्वाभाविक है । १५६. सर्वज्ञ के उपयोग में क्रम क्यों नहीं पड़ता ? सर्व को युगपत जान लेने के कारण सर्वज्ञ को नवीन जानने के लिये कुछ शेष नहीं रहता, जिससे कि वह एक को छोड़ कर दूसरे को जानने के प्रति उद्यम करे । ( १५७ ) दर्शन चेतना ( दर्शनोपयोग) के कितने भेद हैं ? चार हैं--चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधि दर्शन और केवल दर्शन । (१५८) चक्षु दर्शन किसे कहते हैं ? नेत्र इन्द्रिय, जन्य मतिज्ञान से पहिले होने वाले सामान्य प्रतिभास या अवलोकन को चक्षुदर्शन कहते हैं (१५६ ) अचक्षु दर्शन किसे कहते हैं ? चक्षु के सिवाय अन्य इन्द्रियों और मन सम्बन्धित मतिज्ञान से
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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