SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २-अन्य गुण पर्याय ११६ ४-जीव गुणाधिकार हो ऐटम बमों द्वारा यह कल्पना एक क्षण में इस पृथ्वी को प्रलयंकर अग्नि में जलती देखने लगती है। (७२) अनुमान ज्ञान किसे कहते हैं ? साधन से साध्य के ज्ञान को कहते हैं जैसे-धूम देखकर अग्नि का ज्ञान अथवा किसी व्यक्ति की आवाज सुनकर उस व्यक्ति का ज्ञान । ७३. अनुमान ज्ञान कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का-स्वार्थानुमान और परार्थानुमान । ७४. स्वानुमान किसे कहते हैं ? । बिना किसी अन्य के उपदेश के या हेतु आदि के या तर्क वितर्क के, जो ज्ञान स्वत: किसी पदार्थ को प्रत्यक्ष करने के अनन्तर हो जाता है, वह स्वार्थानुमान है। जैसे धूम को देखकर अग्नि का ज्ञान स्वयं हो जाता है। ७५. परार्थानुमान किसे कहते हैं ? किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा हेतु आदि देकर समझाये जाने पर जा ज्ञान होता है, वह परार्थानुमान है । (इस ज्ञान के अंगोपांगों का विशेष विस्तार पहले अध्याय १ के अधिकार ३ में किया ७६. श्रुत ज्ञान के होने का क्या क्रम है ? मतिज्ञान पूर्वक ही श्रुत ज्ञान होता है। ७७. मतिज्ञान पूर्वक से क्या समझे ? पहले किसी इन्द्रिय द्वारा विषय का प्रत्यक्ष होता है और फिर उससे सम्बन्धित अन्य विकल्प होते हैं, भले ही वे विकल्प हिताहित रूप हों अथवा कल्पना रूप अथवा वाच्यवाचक रूप या अनुमान रूप । अथवा स्मृति द्वारा किसी विषय का परोक्ष ज्ञान करके इसी प्रकार के विकल्प होते हैं। अथवा किसी वक्ता के शब्द व वाक्यों को मति ज्ञान द्वारा सुनकर उसके
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy