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________________ २-द्रव्य गुण पर्याय १०८ ४-जीव गुणाधिकार ७. ज्ञानोपयोग व दर्शनोपयोग किसे कहते हैं ? ज्ञेयों से संवलित बाह्य चित्प्रकाश को ज्ञानोपयोग और अन्तस्तत्वोपलब्धि रूप अन्तचित्प्रकाश को दर्शनोपयोग कहते हैं । नोट:-विशेषता के लिये आगे पृथक-पृथक चर्चा की गई है। ८. ज्ञान चेतना किसको कहते हैं ? साक्षी भाव से ज्ञेयों का जानना रूप ज्ञान चेतना, वीतरागी जनों में ही सम्भव है। ६. कर्म चेतना किसे कहते हैं ? अहंकार रञ्जित कर्तत्व व भोक्तत्व के परिणाम कर्म चेतना है । यह सर्व रागी जीवों को होती है। १०. कर्म फल चेतना किसे कहते हैं ? सुख दुख के कारण मिलन पर उनमें सुख दुख का वेदन करना रूप चेतना के परिणाम कर्म फल चेतना है। यह सामान्य रूप से सभी रागी जीवों को होती है, फिर भी प्रधानतया एकेन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीवों में मानी गई है। ११. क्या संज्ञो जीवों को कर्मफल चेतना नहीं है ? होती है, पर उनमें कर्म चेतना की प्रधानता है, क्योंकि वे सुख दुख की कारणकूट सामग्री को अपने अनुकल करने के प्रति ही सदा रत रहते हैं. असंजी पर्यत के मर्व जीव उन्हें करने को समर्थ न होने से जैसा तैसा भी सुख दुख प्राप्त होता है भोग लेते हैं, अतः वहाँ कर्मफल चेतना प्रधान है।। प्रत्येक जीव प्रति समय कुछ न कुछ जानता तो है ही। तब क्या उन्हें ज्ञान चेतना होती है ? नहीं, ज्ञान चेतना सर्व विकल्पों से अतीत सहज ज्ञाता दृष्टामात्र भाव को कहते हैं । साधारण जीवों का जानना इप्टानिष्ट बुद्धिपूर्वक प्रयत्न विशेष के द्वारा होने से वैसा नहीं होता। १३. आपको अब पढ़ते समय कौन सी चेतना है और क्यों? कर्म चेतना है, क्योंकि ज्ञान प्राप्ति के विकल्प सहित प्रयत्न विशेष द्वारा हो रही है।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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