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________________ ३- गृणाधिकार २-द्रव्य गुण पर्याय १०४ १०५. वर्तना हेतुत्व किसे कहते है ? सर्व द्रव्यों को परिणमन करने में सहकारी काल द्रव्य के गुण को वर्तना हेतुत्व कहते हैं। १०६. गति हेतुत्व, स्थिति हेतुत्व, अवगाहना हेतुत्व व वर्तना हेतुत्व कितने कितने प्रकार के हैं ? ये केवल एक-एक प्रकार के ही होते हैं। १०७. क्या गति हेतुत्व गुण अपने लिये भी निमित्त हो सकता है ? नहीं, क्योंकि वह जीव व पुद्गल की गति में निमित्त होता है, स्वयं क्रियाविहीन होने से अपने को निमित्त नहीं हो सकता। १०८. क्या रस व गति हेतुत्व गमन कर सकते हैं ? द्रव्य से पृथक होकर तो गुण का गमन सम्भव नहीं, हां गतिमान द्रव्य के साथ ही उसका गुण भी अवश्य गमन करता है। गतिमान होने से पुद्गल के साथ रस का गमन सम्भव है पर गति विहीन होने से धर्मास्तिकाय के गति हेतुत्व का गमन सम्भव नहीं। १०६. सभी पुद्गलों में चारों गुण पाये जाते हैं या होनाधिक भी? सभी पुद्गलों में वे परमाणु हों या स्कन्ध रसादि चारों गुण होते हैं। ११०. जल में गन्ध, अग्नि में गन्ध व रस और वायु में रूप रस गन्ध नहीं पाये जाते। ऐसा वास्तव में नहीं। स्थूल व्यक्ति न होने से स्थूल इन्द्रियों द्वारा उनका ग्रहण वहां भले न हो, परन्तु वास्तव में वे वहां हैं अवश्य; क्योंकि अगुगलघुत्व के कारण वे पृथक नहीं हो सकते। १११. परमाणु में हल्का भारी व कठोर नर्म स्पर्श नहीं होता? यह ठीक है, परन्तु ये स्पर्श को पर्याय हैं, गुण नहीं । इससे भी अधिक कहें तो ये केवल आपेक्षिक धर्म हैं जो स्कन्ध में देखे जा सकते हैं, परन्तु स्पर्श गुण की पर्याय नहीं है । स्पर्श का ही विषय होने से इन्हें स्पर्श गुण की पर्याय कहने का उपचार है।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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