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________________ RANA ५२ जैनसिद्धांतसंग्रह। योजन लाख गयंद बदन-सौ निरमए । वदन वदन वसुदंत, दंत सर संठए । सर सर सौ-पणवीस कमलिनी छानहीं। कमलिनि कमलिनि कमल, पचीस विरामहीं ॥ रानहीं कमलिनि कमल अठोवर,-सौ मनोहर दल बने । दल दलाहिं अपछर नटहि नवरस, हावभाव सुहावने ॥ मणि कनककंकण वर विचित्र, सु अमरमुडप सोहये । धन घंट चंवर धुमा पनाका देखि त्रिभुवन मोहये ।। . विहिं करि हरि चदि आयो, सुरपरिवारियो। पुरहि प्रदच्छन देत सु, गिन नयकारियो । . गुप्त नाय जिन-जननिहि, सुखनिंद्रा रची। मायामयी शिशु राखि नौ, मिन आन्यो सची। मान्यो सची मिनरूप निरखत, नयन तृप्ति न इजिये । वब परमहरपितहृदय हरिने, सहस लोचन पूनिये ॥ पुनि करि प्रणाम जु प्रथम इंद्र, उछंग धरि प्रभु लीनए । ईशानइंद्र सुचंद्रछवि शिर, छत्र प्रमुके दीनए ॥ ७॥ सनतकुमार महेंद्र, चमर दुहि दारहीं। शेष शक जयकार, सबद उच्चारहीं। उच्छवसहित चतुविधि, सुर हरषित भएं। योजन सहस निन्याणवे, गगन उलंधि गए। मंघि गये सुरगिरि नहाँ पांडक,-वन-विचित्र विराजहीं। पांडकशिला तहाँ अर्द्धचंद्रसमान, मणि छवि छानहिं ।। योजन पचास विशाल दुगुणायाम वसु ऊंची गणी ।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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