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________________ २८२] जनातभा जैनांसद्धांतसंग्रह। ॐ ही वैशाखशुरुदशम्यां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीमहावीर- . जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ कातिक श्याम अमावस शिवतिय, पावापुरते वरना । गनफनिवृंद जबै तित बहु विधि, मैं पूजू मयहरना । मोहि राखौ ॥९ ॐ ही कार्तिककृष्णामावास्यायांमोक्षमङ्गलमंडिताय श्रीमहावरिजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥ अथ जयमाला। गन्धर असनियर चक्रपर, हरघर गदाधर वरवदा। अरु चापधर विद्यानुवर, तिरसूलधर सेवहिं सदा । दुखहरन आनंदमरन तारन, तरन चरन रसाल हैं। सुकुमाल गुन मणिमाल उन्नत,मालकी जयमाल है ॥ १॥ पत्ता-जय त्रिशलानंदन हरिलतवंदन, नगदानंदनचंद वरं । ___ भवतापनिकंदन तनमनवंदन, रहितसपंदन नयन घरं ॥२॥ तोटक-नय केवलमानुकलासदनं । मविकोकविकाशन कंजवनं ॥ जगजीत महरिपु मोहहरं । रजज्ञानहगांवरचूरकरं ॥ १ ॥ गर्मादिक मंगल मंडित हो । दुख दारिदको नित खंडित हो। . नगमाहि तुमी सत पंडित हो। तुम हीभक्मावविहंडित हो ॥२॥ हरिवंश सरोजनकों रवि हो । बलवंत महंत तुमी कवि हो। लहि केवल धर्मप्रकाश कियो । अवलौं सोई मारग राजति यौ ॥॥ पुनि आपतने गुणमाहिं सही । सुर मग्न हैं जितने सब ही। विनकी वनिता गुण गावत हैं। लय ताननिसौं मनमाबत हैं ॥४॥ ': पुनि नाचत रंग अनेक भरी । तुव भक्तिविष पग एम घरी। ... ::., अननं झननं शननं शननं । सुर लेन वहां तननं:तननं ॥ ५ ॥..
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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