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________________ NAV जिनीसद्धांतसंग्रह। [२८१. रितुफल कलवर्मित लाय, कंचनथार भरौं । शिव फलहित हे जिनराय, तुमढिग भेट घरौं ॥ श्रीवीर० ॥ जय वर्द्धमान० ॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि० ॥६॥ जलफल वसु सजि हिमथार, तनमन मोद घरों । गुण गाऊं भवदाधितार, पूजत पाप हरौं ॥ श्रीवीर. जयवर्द्धमान ॥९॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अय नि० ॥९॥ पंचल्याणक-राग टप्पा । मोहि राखौ हो सरना, श्रीवर्धमान जिनरायजी, मोहि राखौ हो सरना ।टेक!! गरम सादसित छह लियौ तिथि, त्रिशला उर अघहरना । सुर सुरपति तित सेव करत नित, मैं पूजूं भवतरना ॥ माहि राखौ. ॥१॥ __ . ॐ ही आषाढशुक्लषष्ठिदिने गर्भमङ्गलमण्डिताय श्रीमहावीरजिनन्द्राय अध्ये निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥ ___जनम चैत सित तेरसके दिन, कुंडलपुर कनवरना । सुरगिर सुरगुरु पूज रचायौ, मैं पूजू भवहरना || मोहिराखो० ॥ ॐ हीं चैत्रशुक्लत्रयोदशीदिने जन्ममङ्गलप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अघ निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥ ' मगशिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना । नृप कुमारघर पारन कीना, मैं पूजू तुम चरना । मोहि राखौ. ॐ हीं मार्गशीर्ष कृष्णदशम्यां तपोमङ्गलमांडताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥ शुकलदशै वैशाखदिवस अरि, धात चतुक क्षय करना । केवल लहि मवि भवसर तारे, जजू चरन सुख भरना ॥ मोहि
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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