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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह ! श्रीमक्सी पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों । मन वच तन शुद्ध लगाय, तुम गुण गावत हों ॥ पुनं ॥ 8 ॥ ; समथाक सुवे वजधार, उज्ज्वल तुरत किया । लाडू मेवा अधिकार, देखत हर्ष हिया || " [ २५९ श्रीमक्सी पारसनाथ, मन वच पूज करों । मम क्षुबा रोग निर्वार, चरणों चित्त घरों ॥ नैवेद्यं ॥ १॥ वर धूप दशांग बनाय, सार सुगंध सही । मति हर्ष भाव ठर ल्याय, अग्नि मंझार दही ॥ अति उज्ज्वक ज्योति जगाय, पूजत तुम चरणा । मम मोहांधेर नशाय, आायो तुम शरणा ॥ s श्री मक्सी पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों । तुमहो त्रिभुवनके नाथ, तुम गुण गावत हों | दीपं ॥ ६ ॥ श्रीमक्सी पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों । वसु कर्महि कीजे क्षार, तुम गुण गावत हों ॥धु॥ ७ ॥ . बादाम क्षुहारे दाख, पिस्ता ल्याय घरों । ले नाम अनार सुपक्व, शुचिकर पूज करों ॥ .. श्रीमती पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों । (M शिवफल दीने भगवान, तुम गुण गावत हों ॥ फलं ॥८॥ जल आदिक द्रव्य मिळाय, वसुविधि अघं किया । घर सान रचो ल्याय, नाचत हर्ष हिया ॥ . A श्रीमती पारसनाथ, मन वच ध्यावत हों । !" तुम भव्यों को शिव साथ, तुम गुण गावतं हों ॥ अर्ध ॥२॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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