SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ AANAA NRNAVANAAD जनसिद्धातसंग्रह। .[२६५. : (१९) गुरुपूजा। दोहा-चहुं गति दुखसागरविणे, तारनतम्ननिहाम । रतनत्रयनिधि नगन तन, धन्य महां मुनिराम ॥ ॥ . ही श्रीभाचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुसमूह ! अत्राववरावतर। संवौषट् । ॐ ही श्रीमाचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुसमूह ! अत्र विष्ट तिष्ठ । : । ॐ ही श्रीआचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुसमूह ! न मम सनिहितो भव भव । वषट् । शुचि नीर निर्मल छीरदघिसम, मुगुरु चरन चढ़ाया। .... तिहुँ घार तिहुं गदटार स्वामी, पति उछाह बढ़ाइया ॥ भवमोगतनवैराग्य पार, निहार शिव तप तपत हैं। . .. तिहुं जगतनाथ भधार साधु सु पून नित गुन नपत हैं ॥१॥ .. __ ॐ ह्रीं श्रीभाचार्योगध्यायसर्वसाधुगुरुम्यो मलं नि० ॥१॥ कपूर चंदन सकिळसौं घसि, सुगुरुपद पूना करौं । सब पाप ताप मिटाय स्वामी, धरम शीतल विस्तरौं । भवमोगतनवैराग धार निहार, शिवतप तपत हैं। तिहु जगतनाथ भराष साधु सु, पून नितगुन भपत हैं ॥२॥ ॐही भाचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुम्यो भवतापविनाशनाय चंदन नि. वन्दुल कमोद सुवास उज्जल, सुगुरुपगतर घरत हैं। गुनकार औगुनहार स्वामी, वंदना हम करत हैं।भव मोना ॐ ही भाचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुम्योऽक्षयपदपाप्तयें.मक्षवान नि.
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy