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________________ जैन सिद्धातसंग्रह -। ज्ञानपूजा । दोहा - पञ्चभेद नाके प्रगट, ज्ञेयप्रकाशन भान । मोह - तपन - हर - चंद्रमा, 'सोई सम्यकज्ञान ॥ १ ॥ [ २३० ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञान अत्र अवतर अवतर । संवाष 1ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञान अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः । ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञान अत्र मम सन्निहितो भव भव D वपटू ॥ सोरठा-नीर सुगंध अपार, त्रिषा हरे मल क्षय करे । : सम्यकज्ञान विचार, आठ भेद पूजौं सदा ॥ १ ॥ · ॐ ह्रीं अष्टविषसम्यग्ज्ञानाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥ - नलकेसर घनसार, ताप हरै शीतल करै । सम्यकज्ञा० ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ अक्षत अनुप निहार, दारिद नाशे सुख करै । सम्यकज्ञा० ॥३॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय अक्षतान् निर्वपा० स्वाहा ॥३॥ पहुपसुवास उदार, खेद हरै मन शुचि करै । सम्यकज्ञा० ॥४॥ . ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ||४|| नेवज विविधप्रकार, छुधा हर थिरता करै । सम्यकज्ञा ० ॥ ५ ॥ ॐ ह्री, अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय नैवेद्यं निर्वपा० स्वाहा ॥५॥ दीपज्योतितमहार, घटपट परकाशे महां । सम्यकज्ञा • ॥६॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥ ग्रुप प्रानसुखकार, रोग विघन नड़ता हरे । सम्यकज्ञा ० ॥७॥ ॐ ह्रीं अष्टविघसम्यग्ज्ञानाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ||७|| श्रीफल आदि विथार, निहचै सुरशिवफल करै । सम्यकज्ञा• ॥८॥ ॐ ह्रीं अष्टविषसम्यग्ज्ञानायं फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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