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________________ २३६ ] जैन सिद्धांतसंग्रह | • नेवज विविधप्रकार, छुपा हरै थिरता फेर सम्यकद० ॥५॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ||५|| दीपज्योति तमहार घटपट परकाश महां सम्यकद० ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥ भूप प्राणसुखकार, रोग विघन जड़ता हरे । सम्यकद० ||७|| · ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ||७|| श्रीफलआदि विचार, निहचे सुरशिवफल करै । सम्यकद ० ॥८॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय फलं निर्वपामीति स्वाहा ||८|| जल गंधाक्षत चारु, दीप धूप फत्र फूल चरु । सम्यकद ० ॥९॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अर्घ्यं निर्वपामीति ॥९॥ जयमाला । · दोहा - आप भाप निचे लखे, तत्वप्रीति व्योहार । रहितदोष पच्चीस है, सहित अष्ट गुन सार || १॥ चोपाइमिश्रित गीता छन्द । - सम्यकदर्शन रतन गहीने। जिनवचमैं संदेह न कोने ! इहभव विभवचाह दुखदानी । परभवमोग है मत प्रानी ॥ प्रानी गिललन न करि अशुचि लाख, घरमगुरूप्रभु परखिये । परदोष ढकिये धरम डिगतेको सुथिर कर रखिये | चहुसंघको वात्सल्य कीजे धर्मकी परभावना । = शुन आठसौ गुन आठ लहिकै, इहां फेर न आवना ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं अष्टाङ्गसहितपञ्चविंशतिदोषरहित सम्यग्दर्शनाय · पूर्णाष्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ -
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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