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________________ wwwmM २२६ ] मनसिद्धांतसंग्रह। चौपाई मिश्रित गीताछंद । उचमक्षमा गहो रे भाई । इहमव नस परभव सुखदाई॥ गाली मुनि मन खेद न आनो । गुनको औगुन कहै अयानो। कहि है अयानो वस्तु छीने, बांध मार बहुविषि करे । घरते निकारै तन विदार, वैर जो न वहां धरै ॥ तें करम पूरब किये खोटे, सहै क्यों नहिं जीयरा । अति कोष अगनि बुझाय प्राणि, साम्य जल ले सीयरा ॥१॥ ॐ ही उत्तमक्षमाधानाय अयं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ मान महाविपरूप, करहि नीचगति जगतम । . कोमल सुधा अनूप, सुख पाव प्राणी सदा ॥२॥ उत्तम माईब गुन मन माना | मान करनको कौन ठिकाना ।। चस्यो निगोदमाहित आया । दमरी लंकन भाग विकाया ॥ रूंकन विकाया भागवशत, देव इकइंद्री भया । उत्तम मुभा चंडाल हुआ, भूप कीडोंमे गया । नीतन्य-मोवन-धनगुमान, कहा करै मलबुदबुदा । करि विनय बहुश्रुत बड़े ननकी, ज्ञानका पावै उदा ॥२॥ ही उत्तममार्दवधर्माङ्गाय अय निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ कपट न कोने कोय, चोरनके पुर ना बसे। . सरल स्वभावी होय, ताके घर बहु संपदा ॥३॥ उत्तममार्जवरीति बखानी । रंचक दगा बहुत दुखदानी ॥ मनमें हो सो वचन उचरिये । वचन होय सो तनसौं करिये।। तत्त्वार्थसूत्र में सत्यसे पहले शैवषर्मको कहा है, इस कारण इस । नामें भी हमने तत्वार्थपत्रके पागनुसार शौवषर्मको पहले कर दिया है।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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