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________________ .१८४] नैनसिद्धांतसंग्रह। हाहा डूबौ नात हों नेक निहार निकार ॥ १९ ॥ मो मैं कह ऊं औरसों तौ न मिटै ठा झार ॥ मेरी तो मोसों बनी ताते कात पुकार ॥ १० ॥ वंदौ पचौं परमगुरु मुरगुरु वंदन नास ॥ विधनहरन मंगलकरन पूरन परम प्रकाश ॥ २१ ॥ चौविसों जिन पद नमो नमों शारदामाय ॥ शिवमग सापक साधु नमि रचों पठ मुखदाय ॥ १२॥ (३) देवशाखागुरुपूजा। ॐ नय नय नय | नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु । णमो माहंताणं णमो सिडाणं णमो मायरियाण। णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वस हणं ॥ ॐ अनादिमूलमन्त्रेभ्यो नमः। (यहां पुष्पाअलि क्षेपण करना चाहिये) चत्तारि मंगल-अहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहू मंगळ, फेवलिपण्णतो धम्मो मंगळं । चत्वारि लोगुत्तमा-मरहंतलोगुत्तमा, सिद्धलोगुत्तमा, साहूकोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा । चत्तारिसरणं पवजामि-अरहतसरणं पञ्चजामि, सिद्धसरणं पन्धजामि, साइसरणं बजामि, केवलिपण्णत्तो धम्मोसरणं पन्बजामि॥ . ॐ नमोऽहं स्व हा। (यहां पुष्पांनलि क्षेप. करना चाहिये ) अपवित्रः पवित्रो वा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा। ध्यायेत्पञ्चनमस्कासपीः प्रमुच्यते ॥१॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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