SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ VARI १७८] जैनसिद्धांतसंग्रह। तृतीय खंड। (१) लघु अभिषेक पाह। श्रीमजिनेन्द्रमभिवन्धनगप्रयेशं . स्याहावादनायकमनन्तचदृष्टपाईम् ॥ . श्रीमूळसंघसुटा मुकतैकहेतु जैनेन्द्रयज्ञविधिरेष मयाम्यधायि ॥ 1 इस श्लोकको पढ़कर जिनचाणों में इप्पांजलि छोड़नी चाहिए) श्रीमन्मन्दरसुदरे शुचिजगात सुदर्माक्षतैः . .. पीठे मुधिवरं निघाय, विपादपद्मसनः। इद्रोऽहं निगमूषणार्थव मिदं यज्ञोपवीतं दधे। मुद्राक्कणशेखरान्यपि तथा नाभिषकोत्सवें ॥ (इस श्लोकको पढ़कर अभिषेक करनेवालोंको ज्ञोपवीत तथा नाना प्रकारके सुंदर मामृष्ण धारण करना चाहिये) सौगन्ध्यसंगतम्भुवतझकतेन सौवर्ण्यमानमिव गंधमनिंधमादौ । भारोपयामि विबुधेश्वरवृन्दवन्ध पादारविन्दममिवाय जिनोत्तमानाम् । ( इस श्लोकको पढ़कर अभिषेक करनेवालोंको अपने अंगमें चन्दनके नव तिलक करना चाहिये। ये सन्ति केचिदिह दिव्यकुलप्रसूता नागाः प्रभूतबादर्पयुता • विवोधाः । संरक्षणार्थममृतेन शुभेन तेषां प्रक्षालयामि पुरतः स्नपनस्य मूमिम् ॥ (इसको पढ़कर अभिषेक के लिये भूमिका प्रक्षालन करें) क्षीगणवाय पयसां शुचिभि: प्रवाहैः प्रक्षालितं सु-वदनेकवारम्। अत्युमुदतम्हं मिनपार पीठं प्रक्षालयामि स्वसंभवतापहारि ।।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy