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________________ FREETHEL जैनसिद्धांतसंग्रह। mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm १५ तृणस्पर्श परीषह-सूखेतण :अरु तीक्ष्णकांडे कठिन कांकरी पांव-विदार। रन उड़ मान पड़े लोचूनमें वार फांस तनु पीर निथार || वापर पर सहाय नहीं: बांछत अपने करसे काह न डोरे। यो तृणपरस परीषह विनयी ते गुरु भव भव शरण हमारे ॥ १९॥ १८ मल परीषह-यावनीव जल न्होंन तनो जिन नम रूप बन थान खडे हैं || चले पसेव धूपकी बेला उड़त धूल संब जंग भरे हैं । मलिन देंहको देख महामुनि मलिनमाव उर नाहि करें हैं । यो मलमनितं परीषह नाते तिनहि हाथ हम सीस घरे हैं ॥ २०॥ १९ सत्कार पुरस्कर परीषह-जा महान विद्यानिधिः विनयी-चिर तपसी गुण अतुल भरे हैं। तिनकी.विनय बचनसे अथवा उठ प्रणाम जन नाहिं करें हैं । तो मुनि तहां खेद नहीं मानत उर मलीनता भाव हरे हैं | ऐसे परम साधुके अहनिशि हात जोड हम पांय परे हैं ॥ २१ ॥ २० प्रज्ञा परीषह-तर्क छंद व्याकरण कलानिधि आगम अलङ्कार पढनानें । नाकी सुमति देख परवादी विलखत होय लाज उर ऑन । जसे सुनत नाद फेहरिका बनंगयंद भाजत भयमानें । ऐसी महाबुद्धिके भाजन पर मुनीश मद रंच न ठानें । २१ अज्ञान परीषह-सावधान बत निशिबासर संयमसूर परम बैरागी । पालत गुठि गये दीर्घ दिन सकल संग ममता परत्यागी ॥ अवधिज्ञान अथवा मनपर्यय केवल ऋद्धि न अजहूं जागी । यो विकल्प नहीं करें तपोनिधिः सो अज्ञान विषयी बडमागी ॥ २३ ॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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