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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह। [१७१ शील सवादी ।। सव पूज्यक पदवीमें हैं परधान ये गादी अठारा सहस्र भद भने वेद अचादी ॥३॥ इस शीलसे सीताका हुवा आगसे पानी । पुर द्वार खुला चलनिमें भरकूप सों पानी ।। नृप ताप टरा शीलसे रानी दिया पानी । गंगामें ग्राहसों बची इस शीलसे रानी ॥ ४ ॥ इस शील ही से सांप सुमनमाल हुमा है। दुख अंजनाका शीलसे उद्धार हुआ है। यह सिन्धुमें श्रीपालको आधार हुआ है । वप्राका परम शील हा से पार हुआ है ॥५॥ द्रोपदीका हुआ शीलसे अम्बरका अमारा । जा धातुदीप कृष्णने सब कट निवारा ॥ सब चन्दना सतीकी व्यथा शीलने टारी।। इस शीलसे ही शक्ति विशल्याने निकारी ॥६॥ वह कोटि शिला शीलसे लक्ष्मणने उठाई। इस ही से नागन था कृष्ण कन्हाई ॥ इस शीलने श्रीपालनीकी कोढ़ मिटाई · अरु रंनमंजूसाको लिया शील बचाई प्रणा इस शीलसे रनपाल कुंवरकी कटी वेरी। इस शीलसे शिष सेठके नन्दनकी निवेरी ।। मूलीसे सिंह पाठ हुआ सिंह ही सेरी । इस शीलसे करमाल सुमनमाल गलेरी ॥ सामन्तभद्रजीने यही शील सम्हारा । शिवपिंडते जिनचन्द्रका प्रतिविम्ब निकारा ॥ मुनि मानतुंगजीने यही शील सुधारा । तव आनके चक्रेश्वरी सव बात सम्हारा ॥९॥ अकलंकदेवनीने इसी शीलसे भाई । ताराका हरा मान विनय बौद्धसे पाई । गुरु कुन्दकुन्दजीने इसी शीलसे नाई। गिरनारपै पाषाणकी देवीको बुलाई ॥१०॥ इत्यादि इसी शीलकी महिमा है घनेरी। विखारके कहने में बड़ी होयगी देरी ।। पल एकमें सब कष्टको यह नष्ट करे। इस ही से मिली रिद्धिसिद्धिं वृद्धि सरी ॥११॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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