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________________ 1. जैन सिद्धांनसंग्रह | (३०) मोहरस स्वरूप । bha भववन भटकत पार्थक जन, हाथी काळं करालं । पीछे लागो हो दुखित, पड़ो कूप विकराल ॥ १ ॥ पकड़ शाख वट वृक्षकी, लटको मुंह फैलाय । 8 ऊपर मधु छत्ता लगा, पड़ी बूंद मुंह आय ॥ १ ॥ निशि दिन दो चूहे लगे, काटत आयु डाल नीचे अजगर फाड़ मुख हे निंगोद भव जाल ॥ ६ ॥ चारं सर्प चारों गति, चारों ओर निहार | । " ... १६३ है कुटुंब माखी अधिक चुंटत तन हरबार ॥ ४ ॥ श्री गुरु विद्याधर मिलें, देख दुखी भव जीव । हो दयाल टेरत उसे मत सह दुःख अतीव ॥ ५ ॥ चन्द मधु है विषय सुख, ताके लालच काज | मानंत. नहि उपदेशको, कर रह्यो आत्म अकाज ॥ ६ ॥ आयु डाल कुछ कालमें कट जावेगी हाय । 'नीचे पड़ बहुकाल लों, भुगते फल दुखदाय ॥ ७ ॥ " (३१) लेश्या स्वरूप । : माया क्रोध रु लोभ मद. है कषाय दुखदाय । तिनसे, रंजित भात्र जो, लेश्या नाम कहाय ॥ १ ॥ षट् लेश्या जिनवर कही, कृष्ण नील कापोत | तेज़ पद्म छट्टी शुकल, परिणामहिं तें होत ॥ २ ॥ " कठियारे षट् भावघर लेन काष्टको भार । " · -
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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