SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ ] जैन सिद्धांतसंग्रह | नर्क पड़त दुःख बहु सहत, जलत कढ़ाई बीच अर्द्ध दग्ध होकर करें, हाय हाय ते नीच ॥ परको धनकरनेका फलपरको बंधन फोन । बांघे पाप अहीन ॥ अशुभ कर्मके उदयते. कुगति उहें ते जीव । छेदन वंदन ताड़ना, बेधन सहें सदीच ॥ परको ताड़नेका फल - निज कुटुम्बके हेतु जिन, माया कीन्ही अति घनी लाठी मूसल विकट अति, चाबुक आदि प्रहार | निर्दय हो तन पीड़ते बांधत पाप अपार ॥ पड़त नर्क संकट सदें, लहें मार विकराल | रोबत हैं रक्षक नहीं, बीतत बहुतहिं काल ॥ इन्द्रिय छेदनका फर हाय पाप में क्या किया, छेदा मानुष चिन्ह | नर्क पड़ा असहाय हो, सहत दुःख हो खिन्न ॥ अधिक बोझ लादनेका फलचढ़ गाड़ी रथपै यहां, लादो बोझ अपार । तिनकी नरकनिमें दशा देखो हृदय विचार || अति कठोर पाथरिनकी, भूमिमाहिं रथ जोर । बैल बनाके जोतके, मारें मार कठोर ॥ अन्न पान निरोधका फलचालक वृद्ध पशु वधू, जो अपने आधीन । खानपान कम देत हैं, समय टाल अति दीन ॥ ENTE GERMAND
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy