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________________ जैन सिद्धान्न दीपिका केवल एक ही मनं है कि वे मब अजघन्य गुण वाले होने चाहिए। एक गुणवाले परमाणुओं का एक गृणवाने परमाणओं के मार सम्बन्ध नहीं होना। :गा। पनमा यह है कि स्निग्ध परमाण मा परमाणु के नायगा रक्ष परमाण निम्न परमाण के माथ मिले तब वे दोनों ही कम में नम दिगण ग्निग्ध एव द्विगण हाने नापि। य: नम एक ओर भी कमी तो उनका सम्बन्ध नही हो सकता। य. नि:श (विजातीय) परमाणमा बाजीगर की पारा। १. अअपना गणवाल गजमाण का काम भाव दा गण अधियः या उमंग अधिक गुणवान माणी मा। होना। स्निग्ध परमाग का नाला परमाणात गा; एम्स परमाणा का "माणमा गम्बा मनाला, जब उनम (स्निग्ध या न परमाणो म। दो गण या उनमें अधिक गृणं। का अन्नर मिल । उदाहरण हा गुण ग्निग्ध परमाणु का चार गुण 'म्नग्ध परमाण न. गाय गायन होता है. किन्नु उनका ममान गुणवाल एव एक गृण धियः वाले परमाण के माय मम्बन्ध नहीं होता। देखिए यन्त्र
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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