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________________ जैन सिद्धान्त दीपिका १३१ ४४. शुक्ल ध्यान के चार भेद हैं- पृथक्त्ववितर्कसविचार, एकत्ववितर्कअविचार, सूक्ष्म क्रियाअप्रतिपानि, समुच्छिन्नक्रियाअनिवृत्ति । निर्मलप्रणिधान – समाधिअवस्था को शुक्ल ध्यान कहते उसके चार प्रकार हैं : १. पृथक्त्ववितर्कमविचार - पृथकृत्व का अर्थ भेद, वितर्क का अर्थ न और विचार का अर्थ व्यञ्जन और योगों का संक्रमण है। किसी एक वस्तु को ध्यान का विषय बनाकर दूसरे सब पदार्थों से उसके भिन्नत्व का चिन्तन करना पृथक व वितर्क है और उसमें एक अर्थ मे दूसरे अर्थ पर एक शब्द मे दूसरे शब्द पर, अर्थ में शब्द पर शब्द मे अर्थ पर एक एक . योग मे दूसरे योग पर परिवर्तन होता है इसलिए वह सविचार है । २. एकत्ववितर्कअविचार - एकत्र का अर्थ अभेद और अविचार का अर्थ असंक्रमण है। एक का चिन्तन करने वाला ध्यान एकत्ववितर्क है और इसमें परिवर्तन नहीं होता इसलिए यह अविचार है । ३. सूक्ष्मक्रियावप्रतिपातितेरहवें जीवस्थान के अन्त में
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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