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________________ जैन सिद्धान्त दीपिका ११६ कहीं-कहीं ऐसी व्यवस्था भी मिलती है कि इन सात व्रतों में शेप चार व्रत ही अभ्यासात्मक होने के कारण शिक्षाबत हैं। पहले तीन व्रत अणुव्रतों के गुणवर्धक होने के कारण गुणवत है। २५. श्रावक के लिए समाचरणीय प्रतिमाएं ग्यारह हैं : १. दशन ६. ब्रह्मचय २. व्रत ७. मचित्तवर्जन ३. सामायिक ८. आरम्भवर्जन ४. पौषध ९. प्रेप्यवर्जन ५. कायोत्सर्ग १०. उद्दिष्टवर्जन ११. श्रमणभुत द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव के द्वारा जिस साधना के प्रकार का प्रतिमान (माप) किया जाता है, उसे प्रतिमा कहा जाता २६. मारणान्तिक तपस्या का नाम मलखना है। अन्तिम आराधना को स्वीकार करनेवाला श्रावक अनशन करने के लिए उससे पूर्व विविध प्रकार की तपस्याओं के द्वाग गरीर को कृण करता है, अनशन के योग्य बनाता है, उस नपस्या-विधि का नाम मारणानिकी मलखना है। २७. कब मैं अल्प या बहन परिग्रह का विसर्जन करूंगा? १. देखें परिशिष्ट १९
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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