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________________ ११५ जैन सिद्धान्त दीपिका १४. शरीर प्रमाण (या गाड़ी के जुए जितनी) भूमि को आंखों से देखकर चलना ईर्या समिति है। १५. निष्पाप भाषा का प्रयोग भाषा समिति है। १६. निर्दोष आहार, पानी आदि वस्तुओं का अन्वेषण करना एषणा ममिति है। एषणा के तीन प्रकार हैं : गवेषणा-शुद्ध आहार की जांच । ग्रहणपणा- शुद्ध आहार का विधिवत् ग्रहण । परिभोगषणा- शुद्ध आहार का विधिवत् पग्भिोग । १७. वस्त्र, पात्र आदि को सावधानी से लेना-रखना, आदान निक्षेप समिति है। १८. मल-मूत्र आदि का विधिपूर्वक विमजन करना उत्मगं-ममिति है। दखी हुई एवं प्रमाजित भूमि में विसर्जन करना--- उ:मर्ग ममिति की विधि है । परिष्टापन का अर्थ परित्याग या विमजन १६. मन, वचन और शरीर का मंचरण करना क्रमशः मनांगुग्लि, वाग्गुप्ति और कायगुप्ति है। मोक्ष-माधना में ममिति प्रवृनिप्रधान होती है और गुप्ति निवृत्तिप्रधान । जहां समिति होती है, वहां गुप्नि अवश्य होती है और गुप्ति में ममिति का होना अवश्यंभावी नहीं है, यही इन
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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