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________________ जैन सिद्धान्त दीपिका और मोक्ष - ये पांच जीव हैं। अजीव, पुण्य, पाप और बन्धये चार अजीव हैं । कहीं-कहीं आत्मा के द्वारा बंधनेवाले, रोके जानेवाले तथा अलग किए जानेवाले पुद्गलों को क्रमशः द्रव्य आश्रव, द्रव्य मंबर और द्रव्य निर्जरा कहते हैं । २६. जीव अरूपी — अमूर्त होते हैं । २७. अजीव रूपी भी होते हैं । १०५ अजीव के चार भेद- धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये अरूपी होते हैं और पुद्गल रूपी होते हैं । पुद्गल के अवस्था विशेष पुण्य, पाप और बन्ध भी म्पी होते है । नव तत्वों में जानने योग्य सब है । संवर, निजंग और मोक्ष ये तीन ग्रहण करने योग्य हैं और शेष छह छोड़ने योग्य है । जीव को भी सांसारिक अवस्था को अपेक्षा मे छोड़ने योग्य कहा गया है । इन सब तत्त्वों का स्वरूप समझाने के लिए श्रीभिक्षुस्वामी ने जो तालाब का उदाहरण बनलाया है, वह इस प्रकार है, जैसे जीव तालाब के समान है । अजीब अतालाब के समान है । बाहर निकलते हुए पानी की तरह पुण्य पाप हैं । निर्मन और मलिन जलागमन मार्ग के समान आश्रव है । जलागमन मार्ग को रोकने के समान मंबर है । जल निकालने की नाली के समान निर्जग है।
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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