SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९५ चैन सिद्धान्त दीपिका कोई मिथ्यात्व का समूलनाश कर क्षायिक सम्यक्त्व को भी प्राप्त कर लेता है। ६. सम्यक्त्व के पांच लक्षण होते हैं-शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य। शम-शान्ति । संवेग-मुमुक्षा। निर्वेद-अनासक्ति । अनुकम्पा-करुणा। आस्तिक्य-सत्यनिष्ठा। १०. सम्यक्त्व के पांच अतिचार हैं-शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, परपाषण्डप्रशंसा और परपाषण्डपरिचय । शंका-लक्ष के प्रति संदेह । कांक्षा–लक्ष्य के विपरीत दृष्टिकोण के प्रति अनुरक्ति । विचिकित्सा-लक्ष्यपूति के साधनों के प्रति मंगयशीलता। परपाषण्डप्रशंसा-लक्ष्य के प्रतिकूल चलनेवालों की प्रशंसा। परपापण्डसंस्तव-लक्ष्य के प्रतिकूल चलनेवालों का परिचय । ११. सम्यक्त्व के आठ आचार हैं : १. नि:शंकित २. निष्कांक्षित ३. निविचिकित्सित ४. अमूढ़ दृष्टि ५. उपबृहण ६. स्थिरीकरण
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy