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________________ जन सिद्धान्त दीपिका भोपशमिक, इनका क्षय होने से प्राप्त होनेवाले सम्यक्त्व को क्षायिक और इनका क्षयोपशम होने से प्राप्त होनेवाले सम्यक्त्व को क्षायोपशमिक कहते हैं। औपमिक सम्यक्त्व से गिरनेवाला जीव जब मिथ्यात्व को प्राप्त होता है, तब अन्तराल काल में जो सम्यक्त्व होता है, उसे सास्वादन कहते हैं। क्षायोपमिक सम्यक्त्व से क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है, उस समय (क्षायोपमिक सम्यक्त्व के अन्तिम समय में) उसकी प्रकृति (सम्यक्त्व मोहनीय) का प्रदेशोदय के रूप में अनुभव होता रहता है अतः उसे वेदक सम्यक्त्व कहते हैं । ५. प्रत्येक सम्यक्त्व दो-दो प्रकार के होते हैं-निसर्गज और निमित्तज। जो उपदेश आदि के निमित्त बिना होता है, उसे निसगंज सम्यक्त्व कहते हैं और जो उपदेश आदि के द्वारा होता है, उसे निमित्तज कहते हैं। ६. ये दोनों सम्यक्त्व करण से भी प्राप्त होते हैं। •७. आत्मा के परिणाम विशेष को करण कहते हैं। ८. करण तीन प्रकार के हैं-यथाप्रवृत्ति, अपूर्व और अनिवृत्ति । अनादि अनन्त मंसार में परिभ्रमण करनेवाले प्राणो के
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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