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________________ श्रीकृष्ण-क्या-अनेक विवाह मे से मयूर को वित्ली ले गई तो रसोइये ने एक मृत शिशु का मास पकाकर खिला दिया । उस दिन से सोदास को मानव-मास खाने की लत लग गई । उसका यह पाप कब तक छिपता ? एक दिन राजा को खवर लग गई तो उसने उसे अपने राज्य से निकाल वाहर कर दिया। वह दुष्ट सोदास यहाँ आ वसा और रोज रात को पाँच-छह मनुष्यो को खा जाता था । आपने उसे मार कर हम लोगो को अभय कर दिया। सब लोगो ने मिलकर वसुदेव को पाँच सौ कन्याएँ दी। तृणशोषक स्थान पर एक रात्रि व्यतीत कर प्रात ही वसुदेव चल दिये। अचल ग्राम पहुंचे तो वहाँ सार्थवाह ने अपनी पुत्री मित्रश्री के साथ उनका विवाह कर दिया।' आगे चल कर वसुदेव वेदसाम नगर आये। वहाँ उन्हे वनमाला (वनमालिका, इन्द्रजालिक इन्द्रगर्मा की पत्नी) दिखाई पडी । वनमाला भी उन्हे देखकर बोली-'इधर आओ, कमार | इधर आओ।' यह कह कर वसुदेव को वह अपने घर आई और अपने पिता से वोली -पिताजी । यह वसुदेव कुमार है। वसुदेव कुमार इन्द्रशर्मा और उसकी स्त्री के व्यवहार से चकित थे। एक ओर तो इन्द्रशर्मा कपटपूर्वक उनका हरण करना चाहता था और दूसरी ओर उसकी स्त्री वनमाला उन्हे आदरपूर्वक अपने घर लिवा लाई । उससे भी अधिक आश्चर्य हुआ उन्हे वनमाला के पिता द्वारा आदर-सत्कार पाकर । वे इस गौरखधन्धे को समझना चाहते थे। उन्होने वनमाला के पिता से कहा - १ किसी ज्ञानी ने मार्थवाह को यह बताया था कि मित्रश्री का विवाह वसु देव कुमार के साथ होगा । इसी कारण मित्रश्री का विवाह उनके साथ हुआ। [त्रिपप्टि ८/२ गुजराती अनुवाद पृष्ट २३४]
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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