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________________ जैन कथामाला भाग ३१ रात्रि के अन्धकार मे अपने अन्य अनुचरो की सहायता से इन्द्रशर्मा ने जप करते हुए वसुदेव को शिविका मे विठाया और ले चला । वसुदेव समझे कि यह देवकृत उपद्रव है इसलिए वे जाप से ही लीन रहे । ५६ रात्रि बीती । सूर्योदय हुआ । वसुदेव शिविका से समझ गये कि यह उपसर्ग नही, इन्द्रशर्मा की चाल है देखकर इन्द्रशर्मा आदि भाग खडे हुए। कूद पडे । वे । उन्हें कूदते वसुदेव सध्या समय तृण गोपक नामक स्थान पर पहुँचे ओर एक खाली मकान मे सो गये । अर्ध रात्रि के भयानक अन्धकार मे एक भयानक राक्षस आया और उन्हे उठाकर पटक दिया । अकस्मात प्रहार से वसुदेव की निद्रा टूट गई । जब तक वे सँभल पाते एक लात पडी, लुढककर वसुदेव दूर जा गिरे । विद्युत की सी फुर्ती मे वे सीधे खड़े हो गये । उछलकर प्रतिद्वन्द्वी पर मुष्टि प्रहार किया । वज्र के समान भयकर आघात से वह प्रतिद्वन्द्वी दूर जा गिरा । अव सँभलने का अवसर न दिया वसुदेव ने | पैर पकड़ कर उठाया और जमीन पर दे मारा। एक बार नही, दो बार नही तब तक मारते रहे जब तक कि उसके प्राण ही न निकल गये । भयंकर चीखो से रात्रि का निस्तब्ध वातावरण भयकर हो गया । प्रात रवि किरणो के साथ ही नगर निवासी निकले तो उस नरपिशाच को मरा देखकर वडे प्रसन्न हुए । वसुदेव का सम्मान किया । वड़े आदरपूर्वक उन्हे अपने पास रखा । कुमार ने पूछा - यह नर-पिशाच कौन है ? उनमे से एक पुरुप वोला कलिग देश के कानपुर नगर मे जित शत्रु, नाम का एक पराक्रमी राजा था । उसके पुत्र का नाम था सोदास । सोदास मास लोलुपी था । एक दिन भी उसे विना मास के चैन नही पड़ता । उसका रसोइया नित्य प्रति उसके लिए एक मयूर का वध करता । एक दिन रसोई
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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