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________________ २० जैन मायामाला भाग३१ रसवणिक ने महाराज को प्रणाम किया और, 'जो आना' कहकर चल दिया। उसने शीन ही नामाकित मुद्रा और पत्र महाराज के समक्ष उपस्थित कर दिये। राजा का संकेत पाकर वणिक् अपने घर चला आया। अव समुद्रविजय ने अनुज वसुदेव कुमार से कहा-- -यह समस्या भी हल हो गई। निश्चय हो गया कि कन मथुरापति उग्रसेन का पुत्र है। समुद्रविजय और वसुदेव कुमार अपने माय कम और बन्दी सिहरथ को लेकर जरासध के पास पहुँचे । प्रसन्न होकर जरासंघ ने जीवयगा के साथ लग्न की बात कही तो वसुदेव ने कंस के पराक्रम उल्लेख करते हुए बताया कि "सिंहरथ राजा को इसी ने बदी बनाया है । इसलिए जीवयशा का उचित अधिकारी यही है।' ___ अपने स्वामी वसुदेव के इन वचनो को सुनकर कस कृतज्ञता से भर गया और जरासंध प्रसन्न होकर अपनी पुत्री जीवयगा का विवाह उससे करने को प्रस्तुत हो गया। ____ कस के वश के सम्बन्ध मे जरासध ने जानना चाहा तो समुद्र विजय ने पूरा वृत्तान्त सुनाकर कहा - 'यह महाभुज कस यादव वशी महाराज उग्रसेन का पुत्र है। इसमे तनिक भी सदेह नही ।' ___ जीवयशा और कस का परिणय हो जाने के बाद जरासघ ने उससे पूछा__-कस | तुम्हे कौन सी नगरी का राज्य चाहिए? निस्सकोच मॉग लो। अपने वश का परिचय जानते ही कस जलकर खाक हो गया था। उसे अपने पिता पर वडा क्रोध आ रहा था। वसुदेव के प्रति कृतज्ञता और आदर के कारण वह स्पष्ट तो कुछ कह नही सका परन्तु मन ही मन अपने माता-पिता को पीडित करने का उसने निश्चय कर लिया।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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