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________________ ३२८ जैन कथामाला भाग ३३ प्रभु बताने लगे गौर्यपुर के बाहर परासर नाम का एक तापस रहता है। उसने यमुना द्वीप मे जाकर एक निम्न कुल की कन्या के साथ सवध स्थापित किया था। उससे द्वीपायन नाम का पुत्र हुआ है । यादवो के प्रति स्नेह के कारण वह द्वारका के समीप रहने लगेगा। ब्रह्मचर्य को पालने वाला वह ऋपि एक वार तपस्यारत वैठा होगा तब यादव कुमार मदिरा के नशे मे उन्मत्त होकर उसे उत्पीडित करेंगे और वह क्रोधान्य होकर द्वारका को जलाकर भस्म कर देगा। ___उस समय तुम और वलभद्र बच निकलोगे । तव दक्षिण दिशा मे पाडुमथुरा जाते हुए वन मे जराकुमार के वाण से तुम्हारा प्राणान्त हो जायगा और तुम तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी मे उत्पन्न होओगे । तीसरी पृथ्वी मे उत्पन्न होने की बात सुनकर श्रीकृष्ण के मुख पर खेद की रेखाएँ उभर आई । तव अरिष्टनेमि ने कहा___-दुखी मत हो कृष्ण | तृतीय पृथ्वी से निकल कर तुम जबूद्वीप के भरतक्षेत्र मे पुर जनपद के शतद्वार नगर मे उत्पन्न होगे। उस समय तुम अमम नाम के वारहवे तीर्थकर होगे। तीर्थकर जैसे महागौरवशाली पद की प्राप्ति सुनकर श्रीकृष्ण हर्षित हो गए। तभी वलदेव ने भी अपनी मुक्ति की जिज्ञासा प्रकट की। प्रभु ने वताया -यहाँ से कालधर्म प्राप्त कर तुम ब्रह्मदेवलोक मे उत्पन्न होगे। वहाँ से च्यवकर मनुष्य होगे, फिर देव और तब मनुष्य भव प्राप्त करके अमम तीर्थकर के शासनकाल मे मुक्त हो जाओगे। __बलदेव भी सतुष्ट हो गए किन्तु जराकुमार द्वारा कृष्ण की मृत्यु अन्य यादव न भूल सके ! वे उसे हेय दृष्टि से देखने लगे। जराकुमार को भी अपने हृदय में वडा दुख हुआ। वह विचारने लगा - मेरे हाथ से भाई की मृत्यु-यह तो घोर पाप है। मुझे चाहिए कि इस नगर को छोड कर इतनी दूर चला जाऊँ कि फिर कभी भी न आ सकूँ। न मैं
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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