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________________ - पाडवो सहित श्रीकृष्ण का रथ जव लवण समुद्र मे बहने वाली महानदी गगा की धारा के समीप पहुंचे तो उन्होंने कहा -पाडवो तुम लोग गगा नदी को पार करो तब तक मैं लवण समुद्र के अधिपति सुस्थित देव से मिलकर आता हूँ। कृष्ण की आज्ञा मानकर पाडव तो गगा की धारा के पास पहुँचे और श्रीकृष्ण सुस्थित देव के पास जा पहुंचे। पाँचो पाडवो ने एक छोटी सी नौका की खोज की और उसमे वैठकर गगा नदी को पार किया । तट पर उतरने के बाद वे परस्पर विचार करने लगे-'नाव को यहाँ छिपा दिया जाय, देखे वे . गगा को भुजाओ से पार कर सकते है, या नही ।' पाँचो भाइयो की इस बात पर सहमति हो गई । उन्होने नाव को छिपा दिया। . जब मनुष्य के दुर्दिन आते है तो वह ऐसे ही अकरणीय कार्य किया करता है। __ श्रीकृष्ण जव सुस्थित देव से मिलकर महानदी गगा की धारा के समीप पहुँचे तो उन्हे कही नाव नहीं दिखाई दी। एक क्षण को उनके मानस मे विचार आया-'साढे वासठ योजन लम्बी महानदी गगा की विशाल धारा में विपरीत दिशा मे तैर कर कैसे पार कर सकंगा ? साथ मे रथ भी है।' किन्तु दृढ निश्चय के धनी और प्रवल आत्मविश्वामी श्रीकृष्ण ने यह विचार दूसरे क्षण ही उखाड फेका । उन्होने एक हाय से रथ यामा और दूसरे हाथ की सहायता से तैरने लगे । आधी दूरी पार होते-होते श्रीकृष्ण के शरीर पर थकान के लक्षण दिखाई देने लगे। तभी गगा की अधिष्ठात्री देवी ने जल का. स्थल बना दिया। उन्होने एक मुहूर्त वहाँ विश्राम किया और फिर गगा मे तैरने लगे । तैरते-तैरते . उनके हृदय मे विचार आया-'पाडव बड़े बलवान है, जो महानदी गगा को भुजाओ से पार कर गए ।' तव तक किनारा आ गया। श्रीकृष्ण ने तट पर खड़े पाडवो को देखा। जल से निकल कर भूमि पर आ खडे हुए और वोले -पाडवो ! तुम बडे बलवान हो, क्योकि तुमने महानदी गगा
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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