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________________ बाणासुर का अन्त ६ शुभनिवासपुर के खेचरपति वाण की पुत्री उपा ने अपने योग्य वर की प्राप्ति हेतु गौरी नाम की विद्या का आराधन किया । प्रगट होकर विद्या ने बताया - पुत्री | तेरा वर अनिरुद्ध है । - अनिरुद्ध कौन ? - वासुदेव श्रीकृष्ण का पौत्र और वैदर्भी से उत्पन्न प्रद्युम्न का पुत्र । वह इन्द्र के समान ही रूपवान और बलवान है । 1 विद्या अदृग्य हो गई और उषा अनिरुद्ध के विचारो मे खो गई । खेचरपति वाण ने भी गौरी विद्या के प्रिय शकर नाम के देव की आराधना की । पुत्री को पति की कामना थी तो पिता को अजेय होने की । कर प्रसन्न हुआ और उसने प्रकट होकर पूछा - क्या चाहते हो, विद्याधर ? - मैं ससार मे अजेय हो जाऊँ । रणभूमि मे कोई मुझे जीत न सके । देव ने तथास्तु कह दिया । किन्तु ज्यो ही गौरी विद्या को मालूम हुआ उसने तुरन्त सावधान किया - देव । तुम्हारा यह वरदान मिथ्या है। - क्यो ? -- अचकचाकर शकर ने पूछा । - इसलिए कि वाण खेचरपति अजेय नही है । इसकी मृत्यु वासुदेव श्रीकृष्ण के हाथो युद्ध भूमि मे ही होगी । - अब क्या करूँ ? २७२
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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