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________________ सत्यभामा ने कन्याओ से पूछा तो उन्होंने कह दिया कि हमारा विवाह भीरुक से नहीं शाव, से ही हुआ है । दासियो की वारी आई तो उन्होंने अंजलि वाँधकर कहा__-महारानीजी ! क्रोध तो करिए मत । हमने तो अपनी आँखो से आपको गावकुमार को ही हाथ पकड़कर लाते देखा है और इसी के साथ इन कन्याओ का विवाह हुआ है।। जब सत्यभामा ने नगरजनो से पूछा तो उन्होने भी कह दिया -~महारानीजी । क्षमा करे। आप स्वय ही तो गावकुमार को हाय पकडकर लाई थी। विवाह सम्पन्न कराने वाले पुरोहित तथा अन्य सभी लोगो की माक्षी सुनकर तो भामा के क्रोध का ठिकाना न रहा । रोपपूर्वक शाव से वोली___-कपटी माता-पिता का पुत्र, कपटी भाई का अनुज-तू महाकपटी है । मुझे कन्या का रूप रख कर छल लिया। विमाता के कथन का गाव ने बुरा नही माना। वह मुस्कराता रहा । भामा क्रोध मे पैर पटकती चली गई। कृष्ण ने गाव का विवाह उन कन्याओ से लोगो के समक्ष कर दिया और जाववती ने वडा उत्सव मनाया। ___ अपनी छल विद्या से गाव फूला न समाया। एक दिन वसुदेवजी को प्रणाम करके वोला -दादाजी (पितामह) | आपने तो सारी पृथ्वी पर घूम कर अनेक कन्याओ से विवाह किया और मैंने घर बैठे ही, देखी मेरी कुगलता। वमुदेव ने गम्भीरतापूर्वक उत्तर दिया -गाव | तुम निर्लज्ज भी हो और ढीठ तथा अभिमानी भी। कुए के मेढक के समान पिता की नगरी से बाहर जाने का साहस ही न कर सके । भाई द्वारा प्रदत्त छल-विद्या से कन्याओ को जीत लेना कोई कुशलता नही । मैंने जो कुछ किया अपने अकेले के ही बलबूते पर किया । मै स्वावलम्बी हूँ और तुम परावलम्बी।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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