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________________ ( २१ ) चरित्र मे नही मिलती । इनमे से प्रमुख विशेषता है -कृष्ण के पिता वसुदेव का जीवन-चरित्र । वास्तव मे वैदिक लेखक कृष्ण की यशोगाथा मे इतने लवलीन हो गए कि उन्होने वसुदेव की ओर ध्यान ही नही दिया । जिस व्यक्ति की आंखो के सामने ही उसके छह नवजात शिशुओ की क्रूरतापूर्ण हत्या कर दी जाय उसके दुख, पीडा और अन्तर्द्वन्द्व का चित्रण भी वैदिक परपरा मे नही किया गया । वहाँ वसुदेव बिलकुल ही शक्तिहीन, असहाय और निरीह प्राणी हैं, जो कस की ओर टुकुर-टुकुर देखते रहते हैं, उससे कुछ कह भी नही पाते । यह विवशता जैन ग्रंथो मे भी है किन्तु उसका कारण है-उनकी वचनबद्धता | वैसे वे अप्रतिम वीर थे । जैन परपरा मे उनकी वीरता और पराक्रम की यथेष्ट चर्चा है । वे अकेले ही अनेक राजाओ का पराभव करते हैं । उनकी पुत्रियो से विवाह करते हैं और बडी ऋद्धि-समृद्धि प्राप्त करते हैं । अनेक बार उन्होंने जरासन्ध को भी छकाया और अनेक युद्धो मे विजय प्राप्त की । कृष्ण चरित्र की प्रेरणाए कर्मयोगी श्रीकृष्ण का चरित्र पग-पग पर प्रेरणाओं से भरा पडा है । क्या वैदिक और क्या जैन दोनो ही परपराओ मे उनके क्रियाकलाप जन-जन के लिए प्रेरणादायी हैं । वैदिक परम्परानुसार गीता उनका उपदिष्ट ग्रन्थ है । उसमे उन्होने निष्काम कर्मयोग की स्थापना कर भाग्यवाद का निरसन किया और आलस्य एव अकर्मण्यता को दूर किया । इन्द्र पूजा वन्द करवाकर मानवो के अन्धविश्वास को समाप्त करने का प्रयास किया । जैन ग्रन्थ मे श्रीकृष्ण का चरित्र बहुत ही उदात्त दिखाया गया है । वे सदाचारी, मत्यवक्ता, अतिवली और सेवाभावी है । परोपकारी ऐसे कि एक वृद्ध को ईटे स्वय पहुँचाते हैं । साहस का उदाहरण कसवध और अमरकका नगरी मे देखा जा सकता है, जहाँ ये अकेले ही जाकर सघर्ष करते है और विजय प्राप्त करते है । कष्ट सहिष्णुता के दर्शन जराकुमार का वाण लगने पर होते हैं। अपने कष्ट और पीडा की चिन्ता न करते हुए उसे प्राण बचाने की प्रेरणा देते है । गुणग्राहकता के सवध मे देव भी परीक्षा लेकर सतुष्ट होता है । पिशाच-युद्ध मे उनकी शाति- तितिक्षा देखने योग्य है । द्वारकादाह
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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