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________________ ( २० ) कष्ट नही था जबकि कृष्ण का जन्म वन्दीगृह मे हुआ । उत्पन्न होते ही मातापिता से बिछुड़ गए और नन्द के घर उसका लालन-पालन हुआ । श्रीकृष्ण ने शिशुवय मे ही अलौकिक कार्य करने प्रारम्भ कर दियेपूतना वध, बकासुर वध, आदि जबकि राम सोलह वर्ष की आयु के पश्चात् ही अपने पराक्रम का परिचय देते है । दोनो ही महापुरुषो को अपना मूल स्थान छोडना पडता है । राम को कैकेई के कारण और कृष्ण को जरास ध के कारण । कस को मारने के समय कृष्ण भी निहत्थे थे केवल उनका अदम्य साहस और पराक्रम ही उनका साथी था और राम ने भी जिस समय सीता का हरण करने वाले का नाश करने की प्रतिज्ञा की उस समय वे भी केवल दो ही भाई थे और वह भी साधनहीन । दोनो ही महापुरुषो ने अधर्म से युद्ध किया और नीति, न्याय एव सदा-चार की स्थापना की । इतना होते हुए भी राम और कृष्ण के चरित्र मे कुछ भिन्नताएँ हैं । राम मर्यादाओ के पालक रहे और कृष्ण ने लोक परपराओ की चिन्ता नही की । मीता - परित्याग राम के जीवन में मर्यादा पालन करने की भावना को अनूठे ढंग से प्रदर्शित करता है । जवकि कृष्ण ने इस बात की चिन्ता नही की । उन्होंने इन्द्रपूजा वन्द कराके अन्धविश्वास को मिटाया । इसी कारण एक वार 'कल्याण' के सम्पादक श्री जयदयालजी गोयन्दका ने राम को 'लोकरजनकारी' और कृष्ण को 'लोकमगलकारी' लिखा था । यही वात सेठ गोविन्ददास ने अपने 'कर्तव्य' नाटक में लिखी है । वहाँ कृष्ण के मुख से स्पष्ट कहलवाया है कि- 'मैंने जन्म ही सड़ी-गली परपराओ और मर्यादाओ के भजन के लिए लिया है ।' इनका यह मर्यादा -भजक रूप ही उनकी आलोचनाओ का कारण बना और राम का मर्यादा पालन ही उन्हे मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप मे प्रतिष्ठित कर गया । फिर भी वन्दीगृह में उत्पन्न होकर त्रिखण्डेश्वर के रूप मे प्रतिष्ठित हो जाना श्रीकृष्ण के अदम्य माहन, पराक्रम और नीतिनिपुणता की ही कहानी है । जैन कृष्ण कथा की विशेषताएँ जैन कृष्ण कथा की कुछ ऐमी विशेषताएँ है जो वैदिक परम्परा के कृष्ण
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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