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________________ २२० जैन कथामाला भाग ३२ हुई। तव चम्पानगरी मे सागरदत्त सेठ की स्त्री सुभद्रा के गर्भ से सुकुमारिका नाम की पुत्री हुई। उसी नगर मे जिनदत्त नाम का एक धनी सार्थवाह था । वह एक वार सेठ सागरदत्त के घर आया तो उसने सुकुमारिका को अपने पुत्र सागर के योग्य समझा। उसने उसकी मागणी की तो सागरदत्त ने कह दिया-'पुत्री मुझे प्राणो से प्यारी है, यदि तुम्हारा पुत्र घरजंवाई वनने को तैयार हो तो विवाह हो सकता है।' जिनदत्त ने जव यह वात अपने पुत्र सागर से पूछी तो वह चुप रह गया। उसके मौन को को सम्मति समझ कर जिनदत्त ने उसका विवाह सुकुमारिका से कर दिया। रात्रि को ज्यो ही सुकुमारिका ने उसका स्पर्श किया तो सागर का शरीर अगारे की भाँति जलने लगा। कुछ समय बाद जव सुकुमारिका सो गई तो वह चुपचाप उठा और अपने घर आ गया। प्रात जब सागर न मिला तो सेठ सागरदत्त उलाहना देने जिनदत्त के घर गया । उस समय जिनदत्त अपने पुत्र से कह रहा था 'तुमने वहाँ से आकर अच्छा नहीं किया। मैने समाज के भद्रपुरुपो के समक्ष वचन दिया है कि तुम सागरदत्त सेठ के घरजंवाई हो और उसी के यहाँ रहोगे । इसलिए तुम तुरन्त वहाँ चले जाओ।' ___ मागर ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया- 'मै अग्नि में कूद सकता हूँ किन्तु सुकुमारिका के साथ नहीं रह सकता।' पिता-पुत्र की यह वाते सागरदत्त भी वाहर से कान लगाए सुन रहा था। उस विश्वास हो गया कि सागर को उसकी पुत्री से घोर अरुचि है । अत विना कुछ कहे ही उल्टे पाँव लौट आया और सुकुमारिका से वोला -पुत्री | सागर तो अब तुम्हारे साथ रहेगा नही। मैं तुम्हारा दूसरा विवाह कर दूंगा । तुम खेद मत करो। - दूसरा विवाह किया सागरदत्त ने अपनी पुत्री का एक दीन-हीन पुरुप के साथ । किन्तु उसके साय भी वैसा ही हुआ और वह रात को ही भाग गया।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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