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________________ २१८ जैन कथामाला भाग ३२ कुछ सूझ ही नही रहा था । लोग आकाश की ओर देखने लगे । शायद कोई दैवी चमत्कार हो और इस समस्या का समाधान मिले। __ सभी चकित थे किन्तु द्रौपदी सहज खडी थी-मानो कुछ हुआ ही न हो । जैसे उसने कोई अकार्य किया ही न हो। तभी एक चारण ऋद्धिधारी श्रमण आकाश से उतरे । सभी ने उठकर बन्दन किया। कृष्णादिक राजाओ ने विनयपूर्वक पूछा -प्रभो । क्या इस द्रौपदी के पाँच पति होगे ? क्या यह पंचभर्तारी कहलाएगी? ___-इसमे आश्चर्य की क्या बात है ?--मुनिश्री ने सहज स्वर मे उत्तर दिया। -यह तो लोक-रीति के विपरीत है ? -किन्तु कर्मफल लोक-रीति से बँधकर ही नही चलता ? द्रौपदी ने पूर्वभव मे जैसा निदान किया था वैसा ही तो फल प्राप्त होगा। -भगवन् ! द्रौपदी के पूर्व भव सुनाइये । इमने ऐसा विचित्र निदान क्यो किया? ___ मभी की जिज्ञामा जान कर मुनिराज द्रौपदी के पूर्वभव बताने लगे___ चम्पानगरी मे सोमदेव, नोमभूति और सोमदत्त नाम के तीन ब्राह्मण रहते थे। वे तीनो महोदर भाई थे। तीनो मे वहुत स्नेह था । सोमदेव की स्त्री का नाम नागश्री था । मोमभूति की स्त्री भूतश्री और सोमदत्त की यक्षश्री थी। सभी भाइयो ने निश्चय किया कि तीनो वारी-बारी से एक दूसरे के घर भोजन किया करेगे । ___इस क्रम के अनुसार एक दिन तीनो भाई सोमदेव के घर भोजन करने गए। नागश्री ने अनेक प्रकार के सरस व्यजन बनाए। कई प्रकार के शाक बना कर उसके हृदय मे भावना हुई कि इन्हें चख कर तो देखू कही स्वाद मे कोई कमी न रह गई हो । चखते-चखते ज्योही तुम्बी के शाक की एक बूंद जीभ पर रखी तो थूक दिया - जहर के समान कडवी थी वह । सोचा-यह क्या हो गया ? ऐसा कडवा शाक -
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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