SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीकृष्ण-कथा---प्रद्य म्न के पूर्वभव २०५ पर-स्त्री मे आसक्त रहता था। एक बार उसकी दृष्टि रुक्मिणी पर पड़ गई । काम पीडित होकर उसने गुण्डो द्वारा रुक्मिणी को पकडवा मॅगाया और अपने अत पुर मे रख लिया। __मोमभूति पत्नी-वियोग की अग्नि मे जलने लगा और राजा जितशत्रु कामसुख भोगने लगा। रुक्मिणी के साथ एक हजार वर्ष तक काम क्रीडा मे निमग्न रहने के बाद उसकी मृत्यु हुई और वह पहली नरक मे तीन पल्योपम आयुवाला नारकी वना। नरक से निकला तो हरिण वना। वहाँ शिकारी के हाथो मृत्यु पाई और माया-कपटी श्रेण्ठिपुत्र हुआ। वहाँ से मर कर हाथी बना। इसने १८ दिन का अनशन करके मृत्यु पाई और तीन पल्योपम आयुवाला वैमानिक देव बना । वहाँ से च्यव कर वह चाडाल बना। अग्निला भी अनेक भवो मे भटकती कुतिया बनी। -हे भद्र । तुम दोनो ने जो चाडाल और कुतिया देखे है, वे पूर्वजन्म मे तुम्हारे माता-पिता थे। इसी कारण तुम्हारे हृदय मे उनके प्रति प्रेम जाग्रत हुआ। ____ मुनिजी के इस कथन से पूर्णभद्र और मणिभद्र को जातिस्मरण जान हो गया । उन दोनो ने चाडाल और कुतिया को प्रतिवोध दिया। बाडाल ने एक महीने के अनशनपूर्वक देह-त्याग किया और नन्दीश्वर द्वीप मे देव हुआ। कुतरी (कुतिया) भी अनशन करके मरी और गखपुर मे सुदर्शना नाम की राजपुत्री हुई। __ कुछ काल पञ्चात् माहेन्द्र मुनि पुन हस्तिनापुर आये तब पूर्णभद्र-मणिभद्र ने चाडाल और कुतिया की गति के सम्बन्ध मे पूछा। मुनिजी ने उन दोनो की सद्गति के सम्बन्ध मे बता दिया। इस पर दोनो भाइयो ने शखपुर जाकर राजकुमारी सुदर्शना को प्रतिबोध दिया । राजपुत्री ने सयम ग्रहण किया और मर कर देव लोक गई। पूर्णभद्र-मणिभद्र भी गृहस्थ-धर्म का पालन करते हुए अपनी आयु पूर्ण करके सौधर्म देवलोक मे इन्द्र के सामानिक देव हुए। देवलोक से अपना आयुष्य पूर्ण करके पूर्णभद्र और मणिभद्र
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy