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दोनो भाइयो ने विनयपूर्वक कहा-हम लोग साधुधर्म का पालन नही कर सकेंगे। -फिर ? यक्ष ने पूछा। -श्रावकधर्म का पालन कर लेगे।
दोनो की इस स्वीकृति को पाकर यक्ष ने उन्हे मुक्त कर दिया। इसके पश्चात् दोनो भाई यथाविधि जिनधर्म का पालन करने लगे। किन्तु उनके माता-पिता वैदिक धर्म का ही पालन करते रहे। ____ अग्निभूति-वायुभूति कालधर्म प्राप्त करके सौधर्म देवलोक मे छह . पल्योपम की आयु वाले देव हुए । देवलोक मे च्यव कर उन दोनो ने हस्तिनापुर के वणिक अर्हहास के घर पूर्णभद्र और मणिभद्र के रूप मे जन्म लिया । वहाँ भी श्रावकधर्म का पालन करने लगे। ___एक वार माहेन्द्र नाम के मुनि हस्तिनापुर मे पधारे। उनकी . देशना से प्रतिबोध पाकर अर्हदास ने श्रामणी दीक्षा ग्रहण कर ली। पूर्णभद्र और मणिभद्र भी मुनि माहेन्द्र की वन्दना करने जा रहे थे। मार्ग मे एक कुतिया और एक चाडाल को देखकर उन्हे प्रेम उत्पन्न हुआ।
दोनो भाई विचार करने लगे-'चाडाल से तो साधारणतया घृणा होती है, हमे प्रेम क्यो उत्पन्न हुआ? इमका क्या कारण है ?' यही ऊहापोह करते-करते दोनो भाई मुनिश्री के पास जा पहुंचे । उनकी वन्दना की और पूछने लगे -
-पूज्यश्री । अभी मार्ग मे आते समय हमें एक कुतिया और एक चाडाल के प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ। इसका क्या कारण है ?
मुनिराज ने बताया
पूर्वजन्म मे तुम दोनो भाई अग्निभूति और वायुभूति नाम के ब्राह्मण थे। उस समय तुम्हारे पिता सोमदेव और माता अग्निला थी।
सोमदेव मर कर शखपुर का राजा जितशत्रु हुआ और अग्निला शखपुर मे ही सोमभूति ब्राह्मण की पत्नी रुक्मिणी बनी । राजा जितगत्रु