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________________ प्रद्य म्न के पूर्वभव पूर्व विदेह क्षेत्र मे प्रभु सोमधर स्वामी के समवसरण मे उपस्थित होकर नारद ने भक्तिपूर्वक नमन-बदन किया और उनकी परम कल्याणकारी देगना सुनने के पश्चात् अजलि वाँधकर पूछा -प्रभु । भरतक्षेत्र की द्वारका नगरी के स्वामी कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी का पुत्र इस समय कहाँ है ? -मेघकूट नगर मे। -प्रभु ने सक्षिप्त उत्तर दिया। -देवाधिदेव | वह वहाँ कैसे पहुँच गया ? प्रभु ने फरमाया --नारद ! शिशु के पूर्वजन्म का शत्रु धूमकेतु देव रुक्मिणी का रूप बनाकर उसे कृष्ण के हाथ से ले गया। उसने वह गिशु वैताड्यगिरि के भूतरमण उद्यान की टक गिला पर छोड़ दिया। उधर से अपने विमान मे वैठकर मेघकूट नगर का विद्याधर राजा कालसवर अपनी पत्नी कनकमाला के साथ निकला। वह गिगु को उठा ले गया और अव अपना पुत्र मानकर पालन कर रहा है । नारद ने पुन जिज्ञासा प्रगट की -नाथ । धूमकेतु देव का इस शिशु के साथ पूर्वभव का वैर किस कारण था ? सर्वज्ञ प्रभु वताने लगे इस जम्बूदीप के भरतक्षेत्र मे मगध देन है। इसके गालिग्राम नाम के समृद्धिवान ग्राम मे मनोरम नाम का एक उद्यान है । इस उद्यान का स्वामी सुमन नाम का यक्ष था।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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